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!... किसानों की आय दोगुना करने का सपना मध्य प्रदेश का 'जवाहर मॉडल' पूरा कर सकता है.... !

'जवाहर मॉडल' के जरिए किसान अपनी बेकार और बंजर पड़ी जमीन से भी आमदनी कर सकते हैं। घर की छतों पर भी यह मॉडल कारगर है। यह मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी जवाहर कृषि विश्विद्यालय की देन है, इसीलिए जवाहर मॉडल नाम दिया गया है।

यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट और रिसर्चर्स ने आधा एकड़ जमीन में बोरियों में 29 तरह की फसलें और सब्जियां लगाई हैं। दावा है कि इस टेक्नीक का इस्तेमाल कर किसान आधा एकड़ खेत से सालभर में 50 हजार तक का मुनाफा कमा सकते हैं।

 # कम पानी लगता है, जुताई का झंझट भी नहीं #
जवाहर मॉडल खासियत यह है कि इसमें न तो अधिक पानी की जरूरत पड़ती है और न ही खेत जुताई का झंझट। जवाहर मॉडल में 29 किस्म की फसलें और सब्जियां लगाई जा सकती हैं। इस मॉडल को अपनाने वाले किसानों पर निर्भर करता है कि वह मिश्रित खेती में कौन सी फसल की बुआई करना चाहते हैं। इसी से आमदनी तय होगी।

# अरहर के साथ बोरी में लगा सकते हैं धनिया #
मान लीजिए अगर आप अरहर की बुआई करते हैं तो इसके लिए एक बोरी में 45 किलो मिट्‌टी और गोबर की जरूरत पड़ती है। अरहर का पौधा जुलाई में बोया जाता है। फसल सालभर में तैयार होती है। एक एकड़ में करीब 1230 बोरियों में अरहर के पौधे लगते हैं। अरहर के साथ बोरी में धनिया लगाकर दो बार फसल ले सकते हैं। एक बार में एक बोरी से 500 ग्राम धनिए की पत्ती तैयार होती है। अरहर के साथ अलग बोरी में हल्दी या अदरक भी बो सकते हैं। अरहर की छांव में अदरक और हल्दी की अच्छी उपज होती है। एक बोरी में 50 ग्राम बीज लगता है और 6 महीने में दो से ढाई किलो तक उपज तैयार हो जाती है। एक पौधे से दो से ढाई किलो अरहर पैदा होती है।

# लाख का उत्पादन भी कर सकते हैं #
अरहर के पौधे पर लाख का कीड़ा भी चढ़ाकर मुनाफा कमा सकते हैं। कीड़ा नवंबर में चढ़ाते हैं। 8 महीने में एक पौधे से 350 ग्राम के लगभग लाख प्राप्त होता है। इसकी कीमत 350 रुपए प्रति किलो तक होती है। एक पौधे से 5 किलो जलाऊ लकड़ी भी मिल जाती है। लाख केरिना लाका नामक कीट से उत्पादित होने वाली प्राकृतिक राल है। लाख के कीड़े टहनियों से रस चूसकर भोजन प्राप्त करते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए राल का स्राव कर कवच बना लेते हैं। यही लाख होता है, जिसे काटी गई टहनियों से खुरच कर निकाला जाता है। लाख का इस्तेमाल ब्यूटी प्रोडक्ट्स, पॉलिश और सजावट की चीजों को तैयार करने में किया जाता है।

# पौधा लगाने के बाद किसी खाद की जरूरत नहीं #
बोरी में पौधे लगाने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें बीज की मात्रा कम लगती है। बोरी में मिट्‌टी और गोबर के साथ बायो फर्टीलाइजर शुरू में ही मिला देते हैं। बाद में किसी और खाद की जरूरत नहीं पड़ती है। पौधे को जरूरत के अनुसार पोषक तत्व मिलते रहते हैं। यदि पौधे जमीन में लगाते हैं और खाद डालते हैं तो वो मिट्‌टी के नीचे चली जाती है। बोरी में जो खाद है, वो मिट्‌टी में रहती है और जड़ों की पहुंच में रहती है। खाद पौधा खींच लेता है और बेहतरीन उत्पाद देता है।

# ये फसलें भी ले सकते हैं #
ये तो रही अरहर की फसल की बात। दूसरी फसलों के लिए 15 से 20 किलो मिट्‌टी की एक बोरी जरूरत पड़ती है। जवाहर मॉडल में एक बोरी से दो फसल ले सकते हैं। जैसे बैंगन के पौधे के साथ पालक या धनिया, टमाटर के साथ लौकी, मिर्ची के साथ करेला, सेम के साथ गिलकी लगा सकते हैं। विश्वविघालय ने आधे एकड़ में 600 बोरियों में अरहर लगाया है। मेड़ पर प्लास्टिक के खाली बॉटल को उल्टा कर गेंदा लगाया है। एक-एक बोरी में चना, मटर, लहसून, मेघायल का सरसों, कपास, पपीता लगाए हैं। साथ ही यहां 288 वर्गफीट में एक पॉली हाउस भी बनाया गया है। इसमें खीरे की फसल लगाई गई है। जवाहर मॉडल में 29 फसलें लगाई गई हैं। कपास छोड़ हर बोरी से दो फसल ले सकते हैं।

# 615 महिला किसानों ने अपनाया मॉडल #
जिला पंचायत के सहयोग से 615 महिला किसानों ने इस मॉडल को अपनाया है। महिला किसानों ने इसे बाड़ी में लगाया है। पिछले दिनों नाबार्ड के जिला मैनेजर व चीफ मैनेजर आए थे। उन्होंने जवाहर मॉडल अपनाने और छोटे किसानों को लोन देकर इस तरह मध्य प्रदेश में खेती को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया है।

# बोरी और गमले में क्या अंतर है? #
मॉडल का मुख्य उद्देश्य खेती की लागत कम करना है, इससे किसानों को फायदा ज्यादा होगा। एक बोरी डेढ़ से दो साल चल सकती है। इतना बड़ा गमला लेंगे तो 100 रुपए का मिलेगा। बोरी में हवा का आना-जाना अच्छा होता है। इससे जड़ों का विकास होता है। यदि किसी पौधे में जड़ गलन का रोग लग गया तो, वह एक बोरी में ही सीमित रहेगा। पूरे खेत में नहीं फैलेगा। हम आसानी से बोरी को अलग कर सकते हैं।

# आधा एकड़ से 50 हजार की कमाई #
जवाहर मॉडल अपना कर किसान आधा एकड़ में कम से कम 50 हजार रुपए की कमाई कर सकता है। इस विधि में उसका खेत कभी खाली नहीं रहता है और हर हफ्ते कोई न कोई समय से पूर्व उत्पाद तैयार मिला है। जैविक उत्पाद होने से फसल भी अच्छी होती है और उसकी कीमत भी अच्छी मिलती है। जवाहर मॉडल को किसान का एटीएम माना गया है। मतलब एनी टाइम मनी, जब भी किसान चाहे, कोई न कोई उत्पाद बाजार में बेचकर 200 से 400 रुपए रोज कमा सकता है।