Training Post


Pistachio Farming - पिस्ता की खेती.....!

पिस्ता की खेती ड्राई फ्रूट्स के रूप में की जाती है | ईरान को पिस्ता का जन्मदाता कहा जाता है | इसका पौधा अन्य पौधों की भांति ही सामान्य रूप से विकास करता है, जो एक बार तैयार हो जाने के बाद कई वर्षो तक पैदावार दे देता है, जिसमे निकलने वाला पिस्ता फल खाने में कई तरह से इस्तेमाल में लाया जाता है, तथा इसके दानो से तेल भी प्राप्त किया जाता है | पिस्ता के तेल का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, विभिन्न व्यंजन तथा दवाई में किया जाता है| पिस्ते का हरा छिलका गाय, भेड़ तथा मुर्गियों को खिलाने के उपयोग में लिया जाता है | पिस्ता का सेवन करने से डाइबिटीज, पिस्ता शुगर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है | इसके सेवन से त्वचा का सूखापन दूर होता है| पिस्ता एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर तथा डाइबिटीज को रोकता है| भारत में, पिस्ता हिमाचल प्रदेश के चंबल जिले की ऊंची पहाड़ियों और घाटियों में और जम्मू और कश्मीर में लेह और कारगिल के शुष्क समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है।

@ जलवायु 
पिस्ता के लिए शुष्क एवं अर्ध्द शुष्क क्षेत्र, शुष्क ग्रीष्मकालीन, कम नमी एवं ठंडी सर्दियों वाले क्षेत्र उत्तम रहते है| पिस्ता का पौधा अधिक गर्म जलवायु वाला होता है, इसकी खेती में उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को सबसे उचित माना जाता है | गर्म जलवायु के अलावा इसका पौधा सर्दियों के मौसम में भी अच्छे से विकास करता है |किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला पौधों को हानि पहुँचाता है | इसके पौधे सूखे को आसानी से सहन कर सकते है, इसलिए कम बारिश में भी पौधे सामान्य रूप से विकास करते है |

पिस्ता का पेड़ -10 डिग्री तापक्रम से 48 डिग्री तापक्रम को सहन कर सकता है |ग्रीष्म ऋतु में 48 डिग्री तक का तापक्रम सहन कर सकता है | ग्रीष्म ऋतु में 38 डिग्री तापक्रम पर पिसते के पेड़ पर अच्छे आकार के नट्स का उत्पादन होता है| आरम्भ में इसके पौधों को सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है | इसके अलावा जब पौधा 5 से 6 वर्ष का हो जाता है, तब इसके पौधों को अधिकतम 40 डिग्री तथा न्यूनतम 7 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |

@ मिट्टी
पिस्ता के पेड़ विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उग सकते हैं लेकिन वे विशेष रूप से गहरी, रेतीली, दोमट और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पनपते हैं। पिस्ता की खेती के लिए खास तरह की भूमि की जरूरत होती है, इसकी खेती के लिए हल्की क्षारीय भूमि की आवश्यकता होती है | 7 से 8 के मध्य P.H. मान वाली भूमि को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है | इस पेड़ की जड़ें जमीन के अंदर गहराई तक पहुंचने के लिए बढ़ती हैं, इसलिए भारी मिट्टी जो बहुत सारा पानी बरकरार रखती है, इन पौधों के लिए आदर्श नहीं है।

@ खेत की तैयारी 
पिस्ता की फसल उगाने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लिया जाता है | इसके लिए आरम्भ में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई की जाती है| जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, उस दौरान रोटावेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | मिट्टी के भुरभुरा होने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | 

खेत को समतल करने के बाद पौध रोपाई के लिए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है, यह गड्डे 5 से 6 मीटर की दूरी रखते हुए एक मीटर चौड़े और दो फ़ीट गहरे तैयार किये जाते है | इन गड्डो को पंक्तियो में तैयार कर ले, तथा प्रत्येक पंक्ति के मध्य 5 से 6 मीटर की दूरी रखे | 

@ प्रसार
नर्सरी में ग्राफ्टिंग या कलम विधि या बडिंग  द्वारा तैयार किये गए पौधे से प्रसार किया जाता है | पिस्ता के पेड़ को लगाने के लिए अनुकूल पिस्ता रुटस्टॉक के जरिए पौधारोपन किया जाता है। इस रुट स्टॉक या पौधे को नर्सरी में भी उगाया जा सकता है। नवोदित का कार्य पतझड़ में किया जाता है और अंकुरित पेड़ को उसी साल या अगले साल लगा दिया जाता है।

@ बुवाई
*बुवाई का समय
बारिश का मौसम पौधों की रोपाई के लिए उपयुक्त माना जाता है | पिस्ता के पौधों की रोपाई जून और जुलाई के माह में की जाती है, इसके अलावा पौधों की रोपाई फ़रवरी और मार्च के माह में भी की जा सकती है |

*रिक्ति 
अगर सिंचिंत बाग है तो ग्रिड पैटर्न के लिए 6 मीटर गुणा 6 मीटर की दूरी रखी जानी चाहिए। वैसे इलाके जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है वहां पौधों के बीच दूरी 8मीटर गुणा 10 मीटर होनी चाहिए। पिस्ता  (नट) के लिए नर और मादा पेड़ को लगाना चाहिए और इसका अनुपात1:8 (एक नर और आठ मादा पेड़) से 1:10 (एक नर और 10 मादा पेड़) में लगाना चाहिए।

*बुवाई विधि
पौध लगाने से पूर्व तैयार किये गए गड्डो में एक छोटा सा गड्डा बना लिया जाता है, इन गड्डो को गोमूत्र या बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | उपचारित गड्डो में पौधों को पॉलीथिन से हटाकर रोपाई कर दी जाती है | रोपाई के बाद पौध को चारो तरफ से मिट्टी से अच्छे से ढक दिया जाता है | 

@ उर्वरक 
पौधे की आयु के अनुसार उर्वरक खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। प्रथम वर्ष में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा,  70 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। द्वितीय वर्ष में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा,  150 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। तृतीय वर्ष में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा, 300  ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। चतुर्थ वर्ष में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा, 460 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। पंचम वर्ष  में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा, 610 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। छः वर्ष में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा, 610 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। सप्त वर्ष व आगे में गोबर की खाद 50 किग्रा/पौधा, 915 ग्राम नाइट्रोजन, 1.13 किग्रा फ़ॉस्फोरस, 1.80 किग्रा पोटाश दिया जाना चाहिए। 

@ सिंचाई
पिस्ता के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु आरंभ में पौध विकास के लिए अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | गर्मियों के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई सप्ताह में दो बार की जाती है, जबकि सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतराल में पौधों को पानी दे | बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही पौधों की सिंचाई करे | पिस्ता का पौधा जब पूरी तरह से तैयार हो जाये, तब इसके पेड़ को वर्ष में 5 से 6 बार पानी देना होता है |

पिस्ता का पौधा लगाने के पहले वर्ष में 20 लीटर, दूसरे वर्ष में 32 लीटर, तीसरे वर्ष में 46 लीटर, चौथे वर्ष में 63 लीटर, पांचवे वर्ष में 89 लीटर, छठे वर्ष में 110 लीटर तथा सातवें वर्ष एवं आगे के वर्षों में 130 लीटर पानी प्रति पौधा देने की आवश्यकता होती है |  

@ खरपतवार नियंत्रण 
पिस्ता के पौधों में खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए प्राकृतिक विधि द्वारा निराई – गुड़ाई विधि का ही इस्तेमाल किया जाता है, रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार हटाने से पौधों को हानि होती है | इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपाई के तक़रीबन 25 से 30 दिन बाद की जाती है, तथा बाद की गुड़ाई को दो से तीन महीने के अंतराल में करना होता है | इसके पूर्ण विकसित पौधे को वर्ष में दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है |

@ कटाई-छंटाई 
फूलों और फलों के विकास को प्रोत्साहित करने और विकास को नियंत्रित करने के लिए पिस्ता के पेड़ की नियमित रूप से छंटाई करना अनिवार्य है। छंटाई पिस्ता के पेड़ के केंद्र को खोलने और शाखाओं को भीड़भाड़, क्रॉसिंग और रगड़ से बचाने में मदद करती है। पिस्ता को नवम्बर के मध्य से फरवरी मध्य तक सूखी रोगग्रस्त टहनियां तथा पेड़ को आकार देने के लिए कटाई-छंटाई करनी होती है।  

@ फसल सुरक्षा 
*कीट
पिस्ता के खेती करने के दौरान कुछ कीट जैसे धुन, स्टिंगबग और लीफ फुटेड प्लांट बग जैसे सामान्य कीट पतंगे पाए जाते है।

*रोग 
पिस्ता की फसल में  पायी जाने वाली कुछ बीमारियाँ जैसे क्राउन गाल, पिस्ता डायबैक, सेप्टोरिया लीफ स्पॉट, पेनिकल एंड शुट ब्लाईट, पिस्ता साइलिड आदि है।

@ कटाई
पिस्ता का पेड़ बादाम या नट के उत्पादन के लिए काफी लंबा समय लेता है। इसके अंकुरित पेड़ अगले पांच साल तक फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं और पौधारोपन के 12 साल के बाद से पर्याप्त फल देना शुरू कर देते हैं। जब इसके फलो से छिलका उतरता हुआ दिखाई दे, उस दौरान फलो की तुड़ाई कर लेनी चाहिए | 

@ उपज
पौधारोपन के 10 से 12 साल बाद 10 से 13 किलोग्राम प्रति पौधा पिस्ता नट्स प्राप्त होते है।