पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है, लेकिन जानकारी के आभाव में किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता है, ऐसे में प्रदेश में किसानों को जैविक खेती का प्रमाणपत्र देने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई है। जहां पर किसान प्रमाणपत्र बनवा सकते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था के निदेशक प्रकाश चन्द्र सिंह बताते हैं, "आठ अगस्त 2014 को संस्था की शुरुआत की गयी थी, यहां से किसानों जैविक प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जाता है। यहां पर प्रमाणपत्र मिलने के बाद किसान कहीं भी अपने उत्पाद को बेच सकता है।" "उत्पादन का जैविक प्रमाणीकरण कराने के लिए वार्षिक फसल योजना, भूमि दस्तावेज, किसान का पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फार्म का नक्शा व जीपीएस डाटा, संस्था आलमबाग लखनऊ से अनुबन्ध और फार्म डायरी का प्रारूप से संबन्धित अभिलेख उपलब्ध कराना होता है।" एक वर्ष से तीन वर्ष तक जैविक पद्धति का उपयोग करके उत्पादन लेने वाले किसानों के लिए अलग–अलग श्रेणी के प्रमाणपत्र दिए जाने की व्यवस्था विभाग द्वारा की जाती है। किसान संस्था में आवेदन कर सकता है, जिसके बाद संस्था द्वारा आवेदन पत्र की जांच की जाती है। किसान के पात्र होने पर आवेदक को निर्धारित निरीक्षण व प्रमाणीकरण शुल्क जमा करना होता है। आवेदक द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करने पर के बाद संस्था द्वारा आवेदक की खेत का निरीक्षण किया जाता है। खेत के निरीक्षण के बाद जैविक प्रमाणीकरण विभाग द्वारा निरीक्षण रिपोर्ट की जांच करना और रिपोर्ट के साथ प्रमाणीकरण समिति के समक्ष सम्पूर्ण फाइल के रिपोर्ट करना होता है। आवेदक द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था से अनुबंध करना होता है। संस्था द्वारा आवेदक को स्थायी पंजीयन संख्या आंवटित करना होता है। संस्था द्वारा आवेदक को जैविक प्रमाणीकरण पंजीयन प्रमाण पत्र जारी करना। फार्म पर फार्म मैप, फसल इतिहास शीट, क्रय की गयी आगतों का विवरण, फसल कटाई, मड़ाई, भंडारण, विक्रय का रिकॉर्ड, मृदा परीक्षण, जल परीक्षण आदि का फार्म पर तैयार खाद का विवरण, बोये जाने वाले बीज का विवरण कीटनाशक व रोगनाशक उपयोग का विवरण, जिसकी एक प्रति पंजीयन आवेदक परिपत्र के साथ संगलन करना होती है। ज्यादा जानकारी के लिए इस पते पर कर सकते हैं संपर्क उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था लखनऊ मोबाइल +91-7317001232 फोन : 0522- 2451639/2452358 राजकीय उद्यान परिसर, करियप्पा मार्ग, आलमबाग, लखनऊ-226005
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इन तीन हजार बच्चों ने की है पेड़ों से दोस्ती
भारत में अब प्रति व्यक्ति सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं और इनकी संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। अगर हर एक बच्चा पेड़ को ऐसे ही अपना ले तो दुनिया बदल सकती है। पिछले दो वर्षों पहले मनीषा(12 वर्ष) ने अपने स्कूल में जामुन का पेड़ लगाया था आज वो पेड़ आज मनीषा का सबसे अच्छा दोस्त है। स्कूल आने के बाद सबसे पहले वो अपने पेड़ की साफ-सफाई करके उसको पानी देती है। मनीषा जैसे हजारों बच्चे पिछले कई वर्षों से एक-एक पेड़ को अपने दोस्त की तरह बड़ा कर रहे है। लखनऊ जिले के गोसाईंगंज ब्लॉक के मीसा गाँव में पूर्व माध्यमिक विद्यालय में दस बच्चों के दोस्त पेड़ है। "मुझे जामुन खाना पंसद है इसलिए मैंने इस पेड़ को लगाया। सुबह जल्दी स्कूल आकर पहले पानी देते है। फिर क्लास में जाते है।" अपने पेड़ को दिखाते हुए मनीषा बताती हैं, "मेरी और दोस्तों ने भी पेड़ लगा रखे है सभी लोग उसका ख्याल रखते है।" भारत में अब प्रति व्यक्ति सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं और इनकी संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। अगर हर एक बच्चा पेड़ को ऐसे ही अपना ले तो दुनिया बदल सकती है। पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए काम कर रही आई केयर इंडिया संस्था ने उत्तर प्रदेश के तीन हजार स्कूली बच्चों को वृक्षमित्र बनाया है। इस संस्था के यूपी त्रिपाठी बताते हैं, "बच्चों से ही बदलाव किया जा सकता है। इसलिए हमने सरकारी स्कूल के बच्चों को चुना और उन्हें जिम्मेदारी दी। कि वो पेड़ का ख्याल रखे और उन्हें बढ़ा करें।" अपनी बात को जारी रखते हुए त्रिपाठी आगे बताते हैं, "बच्चों को जागरूक करना काफी आसान है उनको जैसा सिखाओं वो वैसा ही करते है। हर महीने पर्यावरण के प्रति बच्चों को जागरूक करने के लिए बच्चों के साथ नई नई गतिविधियां करते है ताकि वो जागरूक हो।" इस संस्था ने अभी तक तीन जिलों (लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर) के 150 से ज्यादा स्कूली बच्चों को वृक्षमित्र बनाया है। यह संस्था बच्चों को कदम, अशोक, फेकस, चितवन, अमरूद, शहतूत, कटहल जैसे कई पेड़ देती है और उसको बड़ा करने की भी जिम्मेदारी भी देती है। बारह वर्षीय सुनैना ने पिछले वर्ष अजूबा का पेड लगाया था। सुनैना बताती हैं, "अभी स्कूल की छुट्टी चल रही है लेकिन हम फिर भी स्कूल आते है क्योंकि अपने पेड़ को पानी देना होता है। स्कूल में जिन जिन का पेड़ है वो सभी आते है। हमने अपने घर में भी पेड़ लगा रखे जिनको मैं ही पानी देती हूं।"
आईआईटी वैज्ञानिकों ने प्याज के छिलके से तैयार की बिजली
सिद्धू अपने प्याज के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। पिछले दो साल से उन्होंने 50 एकड़ में प्याज की खेती शुरू की है, जो कि राज्य में इस फसल की सबसे बड़ी खेती है। वो बताते हैं, "पंजाब सालाना साढ़े सात लाख टन प्याज की खपत करता है और उत्पादन महज डेढ़ टन ही करता है। मेरा लक्ष्य किसानों को प्रति एकड़ 50,000 रुपये शुद्ध मुनाफा दिलवाना है, यह एक बड़ी चुनौती है लेकिन मैंने इसे स्वीकर किया है"। सरकार से प्राप्त सब्सिडी की मदद से उन्होंने 50 में से 20 एकड़ क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई व्यवस्था लगवा दी है।उनके लिए प्याज की तीन ऋतुएं हैं। "सबसे अच्छा रबी है, जिसमे मध्य दिसंबर में पौधारोपण होता है और अप्रैल में कटाई। खरीफ फसल में बुआई जुलाई-अगस्त में होती है और कटाई नवंबर महीने में और विलंबित खरीफ फसल का मौसम सितंबर-अक्टूबर में शुरू होता है। विलंबित खरीफ फसल के सामने कई खतरे होते हैं लेकिन हम लोग तीन सीजन पर प्रयोग कर रहे हैं।"सिद्धू की कंपनी विस्टा फूड के साथ मैकडोनल्ड्स (हैमबर्गर फास्ट फूड रेस्टोरेंट की दुनिया में सबसे बड़ी श्रृंखला) के साथ प्याज की आपूर्ति की बात कर रही है। इसके लिए उन्होंने एकीकृत हाइब्रिड किस्म विकसित की है। अगर करार पर बात बन जाती है तो उन्हें उम्मीद है कि 25 रुपये प्रति किलोग्राम का मूल्य उन्हें मिलेगा।
इशारे से बाल्टी आ जाती है ऊपर, सिंचाई की अनूठी टेड़ा पद्धति
टेड़ा से पानी खींचने में ताकत नहीं लगती, इशारे से बाल्टी ऊपर आ जाती है। स्कूली बच्चे भी यहां नहाने आते हैं। स्त्री-पुरुष नहाते हैं, कपड़े धोते हैं, बर्तन मांजते हैं और मवेशियों को पानी पिलाते हैं।