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खेती के लिए #ड्रोन खरीदने पर सरकार से मिलेगी 100 प्रतिशत सब्सिडी....!

ड्रोन से खेती : जानें, क्या है सरकार की योजना और इससे कैसे मिलेगा लाभ! खेती में कृषि यंत्रों की महती भूमिका को देखते हुए सरकार की ओर से किसानों को कृषि यंत्रों की खरीद पर सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। इस यंत्रों की सूची में अब ड्रोन का नाम भी जुड़ गया है। किसान संगठन सहित कृषि से जुड़ी संस्थाएं को खेती के लिए ड्रोन की खरीद पर सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाएगा। बता दें कि किसानों को सब्सिडी का लाभ प्रदान करने के लिए कृषि यंत्र अनुदान योजना चलाई जा रही है। इसके तहत किसानों को राज्य के नियमों के अनुसार सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। इसी कड़ी में अब ड्रोन की खरीद पर भी सरकार की ओर से 100 प्रतिशत सब्सिडी जो अधिकतम 10 लाख रुपए होगी दी जाएगी। Drone Farming :खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि के विद्यार्थी आगे आएं! पिछले दिनों आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के 60वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि की तेजी से प्रगति के लिए नई टेक्नोलॉजी व संसाधन अपनाने पर जोर देते हुए ड्रोन के माध्यम से खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि के छात्र-छात्राओं से आगे आने का आह्वान किया। पूसा इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली में आयोजित गरिमामय दीक्षांत समारोह में केंद्रीय मंत्री तोमर ने उन्नत किस्मों व प्रौद्योगिकी के विकास के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आईएआरआई द्वारा किए गए महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। तोमर ने किसानों के लाभ और विभिन्न हितधारकों के लिए ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया तथा बताया कि सरकार ने ड्रोन प्रशिक्षण देने के लिए शत-प्रतिशत सहायता-अनुदान देने का निर्णय लिया है। कृषि के विद्यार्थी इसमें बेहतर भूमिका निभा सकते है। कृषि के छात्र-छात्राओं के लिए सब्सिडी का प्रावधान भी है। इस मौके पर प्रो. आर.बी. सिंह,पूर्व निदेशक, आईएआरआई को डी.एससी मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। संस्थान के पोस्ट ग्रेजुएट स्कूल से 284 छात्रों को डिग्री मिली, जिनमें 8 विदेशी छात्र शामिल हैं। मुख्य अतिथि ने फल-सब्जियों की 6 किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया। ड्रोन खरीदने के लिए किन्हें मिलेगा 100 प्रतिशत सब्सिडी का लाभ! केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि क्षेत्र के हितधारकों के लिए ड्रोन तकनीक को किफायती बनाने के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने देश में ड्रोन का उपयोग बढ़ाने के लिए कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन (एसएमएएम) के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया गया है। इसमें अलग-अलग कृषि संस्थानों, उद्यमियों, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) एवं किसानों के लिए सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। इनके अनुसार कृषि मशीनरी प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थानों, आईसीएआर संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा ड्रोन की खरीद पर कृषि ड्रोन की लागत का 100 प्रतिशत तक या 10 लाख रुपए, जो भी कम हो का अनुदान दिया जाएगा। इसके तहत किसानों के खेतों में बड़े स्तर पर इस तकनीक का प्रदर्शन किया जाएगा। अन्य लाभार्थियों को ड्रोन खरीदने पर कितनी मिलेगी सब्सिडी! -कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) किसानों के खेतों पर इसके प्रदर्शन के लिए कृषि ड्रोन की लागत का 75 फीसदी तक अनुदान पाने के लिए पात्र होंगे। मौजूदा -कस्टम हायरिंग सेंटर्स द्वारा ड्रोन और उससे जुड़े सामानों की खरीद पर 40 प्रतिशत मूल लागत या 4 लाख रुपए, जो भी कम हो, वित्तीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराए जाएंगे। कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना कर रहे कृषि स्नातक ड्रोन और उससे जुड़े सामानों की मूल लागत का 50 प्रतिशत हासिल करने या ड्रोन खरीद के लिए 5 लाख रुपए तक अनुदान समर्थन लेने के पात्र होंगे। -ग्रामीण उद्यमियों को किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10वीं या उसके समान परीक्षा उत्तीर्ण होने चाहिए और उनके पास नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा निर्दिष्ट संस्थान या किसी अधिकृत दूरस्थ पायलट प्रशिक्षण संस्थान से दूरस्थ पायलट लाइसेंस होना चाहिए। यह कस्टम हायरिंग केंद्र ले सकेंगे सब्सिडी पर ड्रोन जैसा कि कस्टम हायरिंग सेंटर्स की स्थापना किसान सहकारी समितियों, एफपीओ और ग्रामीण उद्यमियों द्वारा की जाती है। वहीं एसएमएएम, आरकेवीवाई या अन्य योजनाओं से वित्तीय सहायता के साथ किसान सहकारी समितियों, एफपीओ और ग्रामीण उद्यमियों द्वारा स्थापित किए जाने वाले नए सीएचसी या हाई-टेक हब्स की परियोजनाओं में ड्रोन को भी अन्य कृषि मशीनों के साथ एक मशीन के रूप में शामिल किया जा सकता है। ड्रोन के प्रदर्शन के लिए मिलेगी वित्तीय सहायता! ड्रोन तकनीक प्रदर्शन करने वाली कार्यान्वयन एजेंसियों को 6 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर आकस्मिक व्यय उपलब्ध कराया जाएगा, जो ड्रोन खरीदने की इच्छुक नहीं हैं लेकिन कस्टम हायरिंग सेंटर्स, हाई-टेक हब्स, ड्रोन मैन्युफैक्चरर्स और स्टार्ट-अप्स से किराये पर लेना चाहते हैं। उन कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए आकस्मिक व्यय 3 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर तक सीमित रहेगा। वित्तीय सहायता और अनुदान 31 मार्च, 2023 तक उपलब्ध होगा। कृषि में ड्रोन के उपयोग के लिए इन नियमों का करना होगा पालन! नागर विमानन मंत्रालय (एमओसीए) और नागर विमानन महानिदेशक (डीजीसीए) द्वारा सशर्त छूट सीमा के माध्यम से ड्रोन परिचालन की अनुमति दी जा रही है। एमओसीए ने भारत में ड्रोन के उपयोग और संचालन को विनियमित करने के लिए 25 अगस्त, 2021 को जीएसआर संख्या 589 (ई) के माध्यम से ‘ड्रोन नियम 2021’ प्रकाशित किए थे। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कृषि, वन, गैर फसल क्षेत्रों आदि में फसल संरक्षण के लिए उर्वरकों के साथ ड्रोन के उपयोग और मिट्टी तथा फसलों पर पोषक तत्वों के छिडक़ाव के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (एसओपी) भी लाई गई हैं। प्रदर्शन करने वाले संस्थानों और ड्रोन के उपयोग के माध्यम से कृषि सेवाओं के प्रदाताओं को इन नियमों / विनियमों और एसओपी का पालन करना होगा।

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!..... बायो फर्टिलाइजर से बढ़ाएं पैदावार: मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी कृषि यूनिवर्सिटी ने कमाल के जैविक ख

!..... बायो फर्टिलाइजर से बढ़ाएं पैदावार: मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी कृषि यूनिवर्सिटी ने कमाल के जैविक खाद बनाए, कम खर्च में 20% तक बढ़ जाएगी पैदावार .....! किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती महंगे रसायनिक खादों के चलते खेती की लागत बढ़ने की रहती है। मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी कृषि यूनिवर्सिटी ने किसानों की इसी समस्या का हल खोजा है जैविक खाद बनाकर। बेहद सस्ते ये जैविक खाद अपनाकर किसान पहले साल ही रासायनिक खादों में 25 प्रतिशत की कटौती करके 15 से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। तीन से चार साल में किसान पूरी तरह से रसायनिक खाद से छुटकारा पाकर सिर्फ जैविक खाद से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। भास्कर खेती किसानी सीरीज-6 में आईए जानते हैं एक्सपर्ट डॉ. एनजी मिश्रा (विभागाध्यक्ष एवं बायो फर्टिलाइजर प्रोडक्ट यूनिट इंचार्ज, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय) से जैविक खेती किसान भाई कैसे कृषि लागत को कम कर सकते हैं… # 15 तरह के जैविक खाद बनाए हैं # जेएनकेवी ने जवाहर जैव उर्वरक नाम से 15 तरह के बायो फर्टिलाइजर बनाए हैं। इसमें हवा से नाइट्रोजन अवशोषित करने सहित पोटाश, फास्फोरश, जिंक, बीजोपचारित, पत्तियों या गेहूं-धान के अवशेष को गलाने के जैव विघटक शामिल हैं। किसान भाई तीन साल तक इसका प्रयोग करते रहें तो चौथे साल रसायनिक खाद से निजात मिल जाएगी। पहले साल 25 प्रतिशत रसायनिक खादों की कमी कर इसका प्रयोग करें, दूसरे साल 50%, तीसरे साल 75% और चौथे साल पूरी तरह से रसायनिक खाद का उपयोग बंद कर सकते हैं। # किसानों को डबल फायदा # जैविक खाद से फसल उत्पादन के दोहरे लाभ हैं। पहला तो किसान सस्ती और टिकाऊ खेती कर पाएगा। दूसरा उसके उत्पाद जैविक होने की वजह से उसे मुंहमांगी कीमत बाजार में मिलेगी। पहले साल ही किसानों को 15 से 20 प्रतिशत अधिक उत्पाद मिलेगा। जैविक खाद का प्रयोग करके भी किसान रसायनिक खाद के प्रयोग की तुलना में अधिक उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं। # दाे तरह के जैविक खाद बनाए हैं # जेएनकेवी ने दो तरह के जैविक खाद बनाए हैं। पहला पाउडर जैविक खाद और दूसरा तरल जैविक खाद। पाउडर जैविक खाद का उपयोग किसान भाई 6 महीने की अवधि तक कर सकते हैं। वहीं तरल जैविक खाद का उपयोग किसान एक साल तक कर सकते हैं। बस ध्यान इतना देना है कि इसे छाएं में स्टोर करके रखें। पाउडर जैविक खाद 200 ग्राम के पैकेट में 40 से 50 रुपए में और तरल जैविक खाद एक लीटर मात्रा में 300 रुपए तक की कीमत में आता है। किसानों को इस पर 15% तो एनजीओ या बड़ी मात्रा में खरीदने वाली संस्थाओं को 20% तक डिस्काउंट दिया जाता है। # जैविक खाद उपयोग करने का आसान तरीका है # जवाहर जैविक खाद का उपयोग करना बेहद आसान है। पाउडर से बीच उपचार प्रति 15 ग्राम प्रति किलो की दर से किसान भाई कर सकते हैं। वहीं तीन से चार किलो प्रति एकड़ 50 किलो गोबर, केंचुआ खाद या नम मिट्‌टी में मिलाकर कर खेत में कर सकते हैं। इसके बाद हल्की सिंचाई करनी होती है। इसी तरह तरल जैविक खाद की 10 एमएल मात्रा प्रति किलो बीज को गुड़ के साथ घोल तैयार कर उपचारित कर सकते हैं। जबकि खेत में दो लीटर प्रति एकड़ 50 किलो गोबर के खाद में मिक्स कर बिखेर दें। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दें। किसान चाहें तो टपक सिंचाई विधि से डेढ़ से दो लीटर तरल जैविक खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से 200 से 250 लीटर पानी मिलाकर 10 से 15 दिन बाद टपक सिंचाई के माध्यम से कर सकते हैं। # धान, गेहूं के अवशेष व पत्तियों को सड़ाने का सस्ता उपाय # जवाहर जैव विघटक का प्रयोग कर किसान धान, गेहूं, तम्बाकू, चना, बैंगन, गन्ना, केला, टमाटर, चुकंदर, मिर्ची,आलू, सोयाबीन, प्याज, मटर, सूर्यमुखी, अदरक आदि के अवशेष और पत्तियों को सड़ा कर खाद में तब्दील कर सकते हैं। इसके लिए जवाहर जैव विघटक-1 या दो का किसान प्रयोग कर सकते हैं। किसान चाहे तो पूरे खेत में दो लीटर प्रति एकड़ की दर से जवाहर जैव विघटक को पानी में मिलाकर छिड़काव कर जुताई कर दें। नहीं तो 4 फीट चौड़ा, तीन फीट गहरा और 10 फीट लंबाई का गड्‌ढा तैयार कर दो से तीन टन कचरे को दो लीटर तरल जैव विघटक की मदद से सड़ा सकते हैं। कचरे को तीन से चार सतह में जमा कर गोबर के घोल के साथ इसका छिड़काव करते जाएं। एक महीने में यह सड़ा देगा। # इस तरह करता है असर # * प्रोडक्शन यूनिट में 15 तरह के बाॅयो फर्टीलाइजर बनाए जा रहे हैं। इसके प्रयोग से 10से 25 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाता है। * जवाहर राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, एसिटोबेक्टर और जवाहर नील-हरित शैवाल हवा से नाइट्रोजन खींच कर पौधे तक पहुंचाते हैं। जवाहर पीएसबी और जवाहर माइकोराईजा से फसलों को फास्फोरस उपलब्ध होता है। सभी फसलों और सब्जियों में ये लाभदायक होगा। जवाहर केसएसबी से पोटाश की कमी दूर की जा सकती है। सभी फसलों के लिए ये उपयोगी है। * जवाहर जेडएसबी से जिंक की कमी पूरी होगी। ये भी सभी फसलों के लिए उपयोगी है। * जवाहर स्यूडोमोनास, जवाहर बायोफर्टिसॉल और जवाहर ईएम सभी फसलों व सब्जी, फल के फसलों में प्रयोग कर सकते हैं। इससे फसल की गुणवत्ता अच्छी और बढ़वार ठीक होता है। * जवाहर ट्राइकोडर्मा ये सभी फसलों के लिए अच्छा है। बीज उपचार करने से लेकर जड़ व पत्ती रोग को भी दूर करता है। * जवाहर जैव विघटक-1 कवकयुक्त और जवाहर जैव विघटक-2 जीवाणुयुक्त के प्रयोग से फसलों के अवशेष और पत्तियों को सड़ाकर जैविक खाद बना सकते हैं।

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वर्टिकल फार्मिंग: कृषि जगत में एक नई अवधारणा उत्पन्न हुई है।

वर्टिकल फार्मिंग: कृषि जगत में एक नई अवधारणा उत्पन्न हुई है। परिचय। वर्टिकल फार्मिंग कम खड़ी और बिना मिट्टी के उपयोग के साथ खड़ी खड़ी परतों में या अन्य संरचनाओं (जैसे गगनचुंबी इमारत या पुराने गोदाम में) में फसलों को उगाने का अभ्यास है। वर्टिकल फार्मिंग के आधुनिक विचार इनडोर खेती तकनीक नियंत्रित पर्यावरण-कृषि (सीईए) तकनीक का उपयोग करते हैं, जहां सभी पर्यावरणीय कारकों को प्रकाश, आर्द्रता, तापमान के कृत्रिम नियंत्रण के रूप में नियंत्रित किया जा सकता है और बायो फोर्टिफिकेशन जो फसलों का पोषण मूल्य बढ़ाता है। वर्टिकल फार्मिंग की जरूरत। बढ़ती जनसंख्या के साथ बढ़ती खाद्य माँग के कारण बढ़ती कृषि योग्य भूमि सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गई है। उच्च उपज वाली खेती के तरीके जो हमारी विशाल आबादी का समर्थन करते हैं, उनके ताजे पानी, जीवाश्म ईंधन और मिट्टी के हमारे सीमित भंडार की अस्थिर खपत की विशेषता है। वर्टिकल फार्मिंग एक शहर या शहरी केंद्र में एक इमारत के अंदर फसलों की शहरी खेती है, जिसमें कुछ फसलों को समायोजित करने के लिए फर्श तैयार किए जाते हैं। ये ऊंचाइयां भविष्य की कृषि भूमि के रूप में कार्य करेंगी और वे राष्ट्रों द्वारा बहुत कम या बिना कृषि योग्य भूमि के निर्माण कर सकते हैं, उन राष्ट्रों को परिवर्तित कर सकते हैं जो वर्तमान में शीर्ष खाद्य उत्पादकों में खेती करने में असमर्थ हैं।वर्टिकल फार्मिंग आज की शहरी जरूरतों और भविष्य की पीढ़ी के लिए स्थायी खाद्य उत्पादन इकाइयों का एक वैकल्पिक स्रोत बनाती है। खाद्य उत्पादन अभी शुरुआत है। ये वर्टिकल फार्मिंग ग्रे वाटर और ब्लैक वाटर को रीसायकल करेंगे, प्लांट वेस्ट (थिंक प्लाज्मा आर्क गैसीफिकेशन) के विसर्जन से बिजली पैदा करेंगे, जो कचरे को उसके घटक अणुओं तक कम करेगा, और डीह्यूमिडिफिकेशन से पानी की कटाई करेगा। प्रत्येक शहरी केंद्र को भोजन मील पर एक या कई तरह से काट दिया जाता है। स्कोप और संभावित। 1 कम वनों की कटाई और भूमि उपयोग। इसका मतलब कम कटाव और कम बाढ़ है। 2. परित्यक्त या अप्रयुक्त गुणों का उपयोग उत्पादिक रूप से किया जाएगा। 3. फसलों को बाढ़, सूखा और हिमपात जैसी कठोर मौसम स्थितियों से बचाया जाएगा। 4 वाहनों के परिवहन में कमी के रूप में उत्पादित फसलों को आसानी से खपत होती है। 5 कोयला जलाने वाले उत्पाद पर निर्भरता कम होने से कम CO2 उत्सर्जन और प्रदूषण। 6 शहर के कचरे के रूप में समग्र कल्याण सीधे कृषि भवनों में वर्गीकृत किया जाएगा। 7. पानी का उपयोग अधिक प्रभावी ढंग से किया जाता है। वर्टिकल फार्मिंग के फायदे। 1. भविष्य के लिए तैयारी: 2050 तक, लगभग 80% दुनिया की आबादी शहरी क्षेत्रों में रहने की उम्मीद है, और बढ़ती आबादी भोजन की बढ़ती मांग को जन्म देगी।वर्टिकल फार्मिंग का कुशल उपयोग संभवतः इस तरह की चुनौती की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 2. वृद्धि और वर्ष-दौर फसल उत्पादन: ऊर्ध्वाधर खेती हमें बढ़ते क्षेत्र के एक ही वर्ग फुटेज से अधिक फसलों का उत्पादन करने की अनुमति देती है। वास्तव में, इनडोर क्षेत्र का 1 एकड़ कम से कम 4-6 एकड़ आउटडोर क्षमता के बराबर उत्पादन प्रदान करता है। 3. खेती में पानी का कम उपयोग: वर्टिकल फार्मिंग हमें सामान्य खेती के लिए आवश्यकता से 70-95 कम पानी वाली फसलों का उत्पादन करने की अनुमति देती है। 4. प्रतिकूल मौसम की स्थिति से प्रभावित नहीं: मूसलाधार बारिश, चक्रवात, बाढ़ या गंभीर सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से एक क्षेत्र में फसलें प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती हैं। इनडोर वर्टिकल फार्मिंग में प्रतिकूल मौसम का खामियाजा कम होने की संभावना है, जो पूरे वर्ष फसल उत्पादन की अधिक निश्चितता प्रदान करता है। 5. जैविक फसलों का उत्पादन बढ़ाना: चूंकि रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग के बिना फसलों को एक अच्छी तरह से नियंत्रित इनडोर वातावरण में उत्पादित किया जाता है, वर्टिकल फार्मिंग हमें कीटनाशक मुक्त और जैविक फसलों को विकसित करने की अनुमति देती है। 6. मानव और पर्यावरण के अनुकूल: इनडोर वर्टिकल फार्मिंग पारंपरिक खेती से जुड़े व्यावसायिक खतरों को काफी कम कर सकती है। वर्टिकल फार्मिंग में क्या उगाना है? लेटस, कालस, चार्ड एंड कोलार्ड ग्रीन्स, चाइव्स एंड मिंट, बेसिल (मीठा, नींबू, दालचीनी, आदि), अजवायन, अजमोद, टमाटर, स्ट्रॉबेरी, थाइम, मूली, आइस बरग, पालक।

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DIRECT MARKETING OF AGRICULTURE PRODUCTS: A NEW INITIATIVE FOR INDIAN FARMERS

DIRECT MARKETING OF AGRICULTURE PRODUCTS: A NEW INITIATIVE FOR INDIAN FARMERS INTRODUCTION Direct marketing of agriculture produce involves selling a product from the farm directly to customers. Direct marketing is a long felt need of the farmers and consumers of the country as it goes a long way in ensuring higher remuneration to the farmers and meeting the satisfaction level of consumers through direct sale of the agricultural commodity by the farmers to the consumer at affordable prices. Direct marketing of agricultural produce helps in complete elimination of middlemen and commission agents who charge high level of commission fee from the agriculturists/farmers coming to the market yards for selling their produce and then artificially inflate the retail prices. Many growers choose to direct market their products because it allows for better potential profit margins compared to selling wholesale. The benefits realized by cutting out the middleman and getting direct feedback from the customer can make these marketing avenues worth the labour required to sell directly. AN OVERVIEW OF DIRECT MARKETING CHANNELS FARMER’S MARKET A farmer market is a common facility or area where several farmers or growers gather on a regular, recurring basis to sell a variety of fresh fruits, vegetables and other farm products from independent stands directly to consumers. Farmers markets are flexible market channels that accommodate producers with various levels of production experience, quantity of product and product mix. Advantages of Farmer Markets Farmers markets have several advantages, including no requirements for sales volume, no standard pack or grade, access to market information. Springboard to other market channels, advertising and promotion. A great way to build customer loyalty, gets direct feedback, and promote your farm business. Disadvantages of Farmer Markets Farmers markets also have some disadvantages, including requires selling face-to-face, many small transactions, high marketing costs, gruelling market schedules, limited space for vendors. Farmer’s market sales can make for notoriously long days, being off property or investing in staff, running trucks, and dealing with weather related uncertainty on market days. Selling at market requires a high level of customer interaction. Farmer need to have proper transportation and storage, the ability to accept multiple forms of payment, and will need to develop a pretty good idea of what you’ll sell on a given day. Farmer also wants to keep in mind the required vendor fees and other requirements for the market. ON FARM RETAIL On-farm retail describes the various ways in which producers sell their products directly to consumers at the farm. On-farm retail markets may range from simple operations, such as selling pumpkins and bales of straw for fall decorations at a farm stand, to more complex operations, such as an orchard with a retail store. Advantages of On Farm Retail On farm retail have several advantages, including no transportation costs – customers come to the farm, No standard pack/grade, experiential buying, provides instant credibility for “locally grown”. Disadvantages of On Farm Retail On farm retail have several disadvantages, including requires selling face-to-face, stretched boundaries, location challenges, liability, many small transactions, can be capital-intensive to develop market. RURAL PRIMARY MARKET There are many regular and periodical markets in rural and interior areas known as haats, shandies, painths and fairs. Farmers bring their produce there on fixed days of the week and sell it to consumers. These are owned and managed by different agencies, namely, individuals, panchayats, municipalities, including State Agricultural Marketing Boards (SAMBBs) / Agricultural Produce Market Committee (APMCs). Advantages of Rural primary Market Rural Primary Market have several advantages, including no requirements for sales volume, no standard pack or grade, provides instant credibility for “locally grown”. Disadvantages of Rural primary Market These markets lack facilities and hygiene and are highly congested, in deep contrast to agricultural markets in developed countries. These markets are usually managed by panchayats and municipalities who collect ground rent and fees but the funds are not used for their betterment or for developing infrastructure. ROAD SIDE STANDS A roadside stand is a temporary facility set up to sell product at a roadway or other heavy traffic area away from the farm or Organized farmers market. Advantages of Road Side Stands Road Side Stands have several advantages, including no volume or packing/grading requirements, the possibility of serving as a test market for products, the producers’ ability to set the schedule, improvement to farm’s marketing location. This option allows the farmer to stay on or near the farm, minimizing transport to market. If set up as an “honor-system” stand, this option has minimal time and infrastructure needs. Disadvantages of Road Side Stands Road Side Stands have disadvantages, including location challenges, many small transactions and high marketing costs, requires selling face-to-face. A more substantial roadside stand requires an investment in infrastructure, directional signage, marketing, and staffing. U-PICK /PICK-YOUR-OWN/ CUT OR CHOOSE-YOUR-OWN OPERATIONS U-Pick/Pick-Your-Own/Cut or Choose-Your-Own operations occur when consumers visit the farm where a product is grown and go to the field to pick, cut or choose their own product. Advantages of U-Pick/Pick-Your-Own/Cut or Choose-Your- Own operations This channel have advantages, including reduced harvest and handling labour, lower equipment costs, potential for larger transactions and to sell lower-quality produce. Disadvantages of U-Pick/Pick-Your-Own/Cut or Choose-Your- Own operations This channel have disadvantages, including requires excellent location or superior advertising, liability, staffing and supervising customers, potential for crop damage and reduced yield volumes due to improper harvesting, requires lot more attention to public relations, crowd control to prevent theft and damage to crops. COMMUNITY SUPPORTED AGRICULTURE (CSA) In a CSA, the farmer sells shares or subscriptions for farm products to customers. A diverse selection of products is delivered to or picked up by customers at designated sites regularly for a specified time period. CSAs are typically used to market produce, but can also be used to market other products such as meat and flowers or a mixture of products. Advantages of Community Supported Agriculture (CSA) Community Supported Agriculture have advantages, including reduce grower risk and operating capital needs, reduce customer sensitivity to cosmetic defects, help build sense of community and farm brand, reduces selling/marketing time during the production season. Disadvantages of Community Supported Agriculture (CSA) Community Supported Agriculture have advantages, including requires intensive marketing, heavy reliance on word-of-mouth – risk of dissatisfied customers, requires careful crop planning & season extension, season-long agreement with customers E-COMMERCE MARKETPLACE E-Commerce is referred to those strategies and techniques which use online ways to reach target customers. Trading is carried out electronically with the use of online Platform and Application. It converts the farmers sell agriculture products in the physical world to selling in the virtual world. Farm to Farm (F2F) - Farmers sell Agriculture products to each other. That is, the supplier is a farm and the customer is another farm. Farm to Customer (F2C) – Selling Agriculture products to customer or an individual via the Internet. Customer to Customer (C2C) - The supplier and buyer are individuals. Advantages of E-Commerce Marketplace Farmers direct connect with buyers, retailers, traders, corporate, industrial users, exporters and sell their products directly them. Ensure fair and remunerative price to farmers through price discovery. Price realization for farmers through reduce gap between producer’s price and consumers rupee.Making Agriculture products distribution strengthen by transparency, wide market, open for 24 hours/ continuous market, no waste of agricultural products. Disadvantages of E-Commerce Marketplace Lack of physical contact with the product, lack of confidence, delivery time and shipping costs may sometimes be a deterrent DIRECT MARKETING INITIATIVES ApniMandi Initiative in Punjab The ApniMandi was started by the Punjab Mandi Board on the lines of the ‘Saturday Market’ in the UK and the USA. It offers farmers and growers a place in towns of Punjab and Chandigarh to sell their produce directly to consumers. ApniMandi was first established in 1987 at Mohali (Punjab) and after its success, it was introduced in 27 towns in the state. E-Krishi Kendra Initiative in Gujarat (www.ekrishikendra.com) E-Krishi Kendra was started by E-Agro Tech Pvt. Ltd. It provides services to farmers, such as farmers can directly sell farm produce, farmers can create own supply chain and trace a range of mandis in a single click.

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बागवानी किसानो की आय को के लिए एक उभरते क्षेत्र के रूप में आया है।

बागवानी किसानो की आय को के लिए एक उभरते क्षेत्र के रूप में आया है। कृषि फसलों की तुलना में बागवानी के कई फायदे हैं। यह अधिक लाभकारी है। सूखी और पहाड़ी भूमि पर बागवानी की जा सकती है। पानी का उपयोग कम है और इसलिए फसल के खराब होने का खतरा है। बड़े पैमाने पर अनाज वाली फसलों के विपरीत, बागवानी फार्म बहुत छोटे हो सकते हैं, जिससे सीमांत किसानों को अपने छोटे खेत से कमाई बढ़ाने में मदद मिल सकती है। जबकि बागवानी फसलों को उर्वरकों के रूप में अधिक आदानों की आवश्यकता होती है और इसी तरह, किसान अक्सर एक एकड़ से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए एक साथ दो या तीन फसलें लगाते हैं। बागवानी में बदलाव लाने के बाद से उनकी आय कम से कम दोगुनी हो गई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, छह साल पहले उद्यानिकी फसलें पहली बार भोजन के रूप में सामने आईं। तब से, बागवानी उत्पादन ज्यादातर खाद्य उत्पादन के साथ अपने मुनाफ़ा को चौड़ा कर रहा है, खेत की आय, पानी के उपयोग, भूमि उपयोग और रोजगार के पैटर्न पर गहरा प्रभाव है। फार्म से संबंधित नीतियों को भी बदलाव के साथ बनाए रखने की जरूरत है। बागवानी किसानों को एक उच्च आय प्रदान करती है, लेकिन एक आधिक्य के लिए बहुत कम सुरक्षा है। जबकि खाद्यान्न एक न्यूनतम समर्थन मूल्य तंत्र का आनंद लेता है, लेकिन बागवानी में सुरक्षा के रास्ते से बहुत कम है। खराब होने वाली उपज के जीवन का विस्तार करने के लिए, भारत को बेहतर कोल्ड चेन स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क की भी आवश्यकता है। बागवानी भी अधिक से अधिक मशीनीकरण के लिए उधार देती है, और इसके प्रसार के साथ, कृषि रोजगार पर असर पड़ सकता है। विश्व बैंक के वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ, मणिवानन पैथी कहते हैं, बागवानी में बढ़ती रुचि को खाद्य पदार्थों की खपत के पैटर्न (प्राथमिक अनाज, चावल और गेहूं से, फल, सब्जी, अंडे और मांस सहित) और बढ़ती आय से उत्प्रेरित किया गया है। भारत के उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे स्थानों पर जो प्रमुख खाद्य फसल की खेती में हावी हैं - ऐसे क्षेत्र जो कम वर्षा देखते हैं और सूखे की आशंका वाले हैं, बागवानी के कारण दूसरी हवा देख रहे हैं। अन्य विशिष्ट क्षेत्र जहां बागवानी है बड़े पैमाने पर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में हो रहे हैं। कुछ बागवानी फसलों को फल पकने में कम से कम तीन महीने लग सकते हैं, जबकि खाद्य फसलों के लिए एक दशक से ज्यादा। गुलाब- प्याज, काजू और गुलाब का सबसे बड़ा निर्यातक कर्नाटक, बागवानी के सबसे आक्रामक प्रमोटरों में से एक है। राज्य भर में लगभग 1,00,000 कृषकों की सहायता के लिए कुछ 98 एफपीओ हैं। खेती का यह रूप देश भर में भाप बन रहा है, यहां तक ​​कि केंद्र का लक्ष्य 2022 तक किसान की आय को दोगुना करना है। 2016 में, सरकार ने बागवानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन की घोषणा की, जिसके तहत केंद्र 60% वित्तीय सहायता प्रदान करेगा और राज्य सरकार शेष राशि देगा। कर्नाटक, पंजाब, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु के अलावा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने भी इस क्षेत्र के लिए योजनाओं का अनावरण किया है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बागवानी को एक करोड़ हेक्टेयर (1 हेक्टेयर = 2.47 एकड़) में फैलाने की योजना की घोषणा की। सेब के घर, हिमाचल प्रदेश ने, विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त, अपने बागवानी क्षेत्र को फिर से शुरू करने के लिए 1,134 करोड़ रुपये की योजना शुरू की थी। हरियाणा ने अपने बागवानी प्रसाद को बढ़ावा देने के लिए नीदरलैंड के साथ समझौता किया है; 2016 में, इसने बागवानी की खेती के क्षेत्र को 7% से 25% तक बढ़ाने की योजना की घोषणा की। बागवानी को बढ़ावा देने में एक प्रमुख अवरोध है कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी। पर्याप्त स्थान नहीं हैं जहां किसान फलों और सब्जियों को स्टोर कर सकें। इससे उत्पादों को लंबी दूरी पर ले जाना भी मुश्किल हो जाता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट-हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि देश भर में कोल्ड-चेन नेटवर्क की अनुपस्थिति में सभी बागवानी उत्पादों का दसवां हिस्सा रॉस है। इस तरह की श्रृंखला का विकास इस बात पर निर्भर हो सकता है कि विश्व बैंक की पैथी कहे जाने वाले प्रीमियम उपभोक्ता इन उत्पादों के लिए क्या भुगतान करने को तैयार हैं। “भारत के अधिकांश फलों और सब्जियों का स्थानीय स्तर पर उपभोग किया जाता है, इसलिए कोल्ड-चेन नेटवर्क के लिए व्यवहार्य अर्थशास्त्र अभी भी उभरना बाकी है। जबकि आलू को एग्री कोल्ड चेन के शेर के हिस्से के रूप में देखा जाता है, इस बात के संकेत बहुत कम हैं कि सफल मॉडल अन्य उत्पादों के लिए उभरे हैं। " बागवानी क्रांति कई मायनों में जड़ ले रही है। जहां एक ओर किसानों को खाद्य फसलों से फलों और सब्जियों की ओर खिसकाना शामिल है, वहीं कुछ राज्य पुराने गढ़ों के बारे में सोचते हैं। हिमाचल प्रदेश की सेब की खेती, जो कि कम से कम 1970 के दशक की तारीखों की तकनीक पर चल रही है, एक उदाहरण है। अब, दो साल का कार्यक्रम एक व्यवसाय को ताज़ा करने की कोशिश कर रहा है, जिसकी कीमत कम से कम 3,327 करोड़ रुपये सालाना है। विश्व बैंक से $ 132 मिलियन ऋण द्वारा वित्त पोषित, यह परियोजना पेड़ों से झाड़ियों तक सेब की खेती को आगे बढ़ा रही है। पहले दसवें साल के बजाय पहले साल से ही मतदान शुरू हो जाएगा। जूरी अभी भी बाहर है अगर बागवानी कृषि में भारत की विभिन्न समस्याओं का हल हो सकती है। लेकिन यह स्पष्ट रूप से किसानों को अधिक आकर्षक विकल्प दे रहा है।

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15 अनोखे और दुर्लभ भारतीय फल।

1. जंगली जलेबी / कोडुक्कापुली (कैमचाइल) जंगली जलेबी (या कोदुक्कापुली) के सर्पिलिंग वाले हरे-गुलाबी फली में लगभग 6-10 चमकदार काले बीज होते हैं जो एक मोटी मीठी खाद्य लुगदी में लिपटे होते हैं। जबकि लुगदी को कच्चा खाया जा सकता है या नींबू पानी के समान पेय बनाया जा सकता है। यह भारतीय मीठी जलेबी के लिए फल की वजह से है कि पौधे को जुंगली जलेबी नाम दिया गया है।  तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल 2. कार्बोला (स्टार फल) कैम्बोला एक मोमी त्वचा और हरे से सुनहरे पीले रंग का एक फल है। पके फल में थोड़ा पीला रंग होता है, जिसमें थोड़ी भूरी पसलियाँ होती हैं, और यह एक बढ़िया संरक्षण या अचार बनाता है। अपंग लोग चूने के हरे होते हैं, खट्टा स्वाद लेते हैं और नमक और मिर्च पाउडर के मिश्रण के साथ कटा हुआ और छिड़का जाने पर सबसे अच्छा खाया जाता है। सितंबर-अक्टूबर और जनवरी-फरवरी के महीनों में विकसित, भारत इस फल के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।  पूरे भारत में (विशेषकर दक्षिण भारत में) 3. बुद्ध के हाथ (फिंगर्ड सिट्रॉन) एक आश्चर्यजनक फल, बुद्ध का हाथ आधार से उभरे हुए लम्बी, पीले रंग के तंबू (जो मानव अंगुलियों से मिलता जुलता है) के साथ एक गांठदार नींबू जैसा दिखता है; इसलिए, इसका नाम — बुद्ध का हाथ। बुद्ध के हाथ में एक सौम्य स्वाद है और यह आश्चर्यजनक रूप से सुगंधित है - यह अपने नए पुष्प इत्र के साथ कमरे को भरने के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि निचले हिमालय में उत्पन्न होने के कारण, वनस्पतिशास्त्री अनिश्चित हैं यदि यह भारत या चीन के क्षेत्र का मूल निवासी है - कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि भारत के प्रवासी बौद्ध भिक्षुओं ने 400 ईस्वी में उनके साथ फल ले गए।  पूर्वोत्तर भारत 4. लंग्साह / लोटका (लंग्सट) दक्षिण भारत में एक छोटा, पारभासी, ओर्ब के आकार का फल, लंग्साह सबसे अधिक पाया जाता है। वे अपंग होने पर काफी खट्टे हो सकते हैं, लेकिन जब चटपटे अंगूर के समान स्वाद के साथ पका हो तो पूरी तरह से मीठा होता है। भले ही इस फल की मांग आसमान छूती है, जब यह मौसम में होता है, इसकी खेती दक्षिण में मुट्ठी भर क्षेत्रों से आगे नहीं बढ़ पाती है। पूरे पूर्वी और दक्षिणी भारत में (विशेषकर नीलगिरि पहाड़ियों में) 5. मंगुस्तन (Mangosteen) एक छोटे से नारंगी के आकार के बारे में एक सुगंधित उष्णकटिबंधीय फल, मैंग्स्टन के चमड़े के बैंगनी-मैरून खोल एक नम, बर्फ-सफेद और मीठे मांसल इंटीरियर के आसपास होता है। हालाँकि यह थाईलैंड का राष्ट्रीय फल है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस फल के पेड़ 18 वीं शताब्दी में दक्षिणी भारत में खूब फलते-फूलते थे। मधुर और मृदु, मंगलसूत्र स्वाद में आम के समान है और पूरी तरह से तभी पका होता है, जब इसकी लकड़ी, चमड़े की बैंगनी पपड़ी स्पर्श की उपज देती है। नीलगिरि पहाड़ियों, तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों और तमिलनाडु में कन्याकुमारी और केरल। 6. जापानी फ़ाल (ख़ुरमा) एक शीतोष्ण फल, जपानी फाल विदेशी, गहरे नारंगी-लाल रंग का और सुस्वाद ख़ुरमा का स्थानीय हिमाचल नाम है। टमाटर के समान दिखने वाला, पूरी तरह से पका हुआ जपनी फल नरम, मीठा और स्वादिष्ट होता है। फल, जो चीन का मूल निवासी है, कोरिया और जापान में फैल गया और शुरुआत में 20 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा भारत में शुरू किया गया था। हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और नीलगिरि हिल्स 7. अंबरेला (भारतीय हॉग प्लम) जंगली आम भी कहा जाता है, एक पके हुए एम्बेरेला में एक अपरिचित आम की पकने की अम्लता और अनानास की कोमल मिठास है। अंबरेलस को हर कल्पनीय रूप में आनंद लिया जा सकता है: एक रस के रूप में, अचार के रूप में, फल कॉकटेल में स्वाद के रूप में, और साधारण स्लाइस के रूप में, नमक और लाल मिर्च पाउडर के साथ छिड़का जाता है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा 8. बाल (लकड़ी सेब) एक अत्यंत बहुमुखी फल, बेल को ताजा या सूखा या यहां तक ​​कि पेय में बनाया जा सकता है। जैसा कि नाम से पता चलता है, इस फल में एक बाहरी लकड़ी होती है जिसे आपको चाकू या मूसल से खोलना पड़ता है। अंदर, आपको एक चिपचिपा गूदा मिलेगा, एक स्वाद के साथ जो बहुत तीखा होता है जब कच्चा और पूरी तरह से पका होने पर मीठा होता है। अम्लता को कम करने के लिए थोड़ा सा गुड़ के साथ खाया जाता है, फल का उपयोग जाम, चटनी या शर्बत बनाने के लिए भी किया जाता है।  महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पश्चिमी हिमालय। 9. चल्टा (हाथी सेब) जंगली हाथियों के पसंदीदा फलों में से एक, चट्टा गीली मिट्टी और दलदलों और अर्ध-उष्णकटिबंधीय जंगलों के नम वातावरण में पनपता है। दस्ता ग्रेपफ्रूट के आकार के फल पीले-हरे रंग के होते हैं, और भूरे रंग का आवरण पाने के लिए पकते हैं। स्वाद में हल्का मीठा और अम्लीय, अधिकांश स्थानीय लोग हाथी की सेब को अपने जेली जैसे लुगदी के लिए नहीं बल्कि उसके कुरकुरे बाहरी पंखुड़ियों के लिए महत्व देते हैं। चटनी के लिए अक्सर फलों को पकाया जाता है। चूंकि वे हाथियों, बंदरों और हिरणों के भोजन का एक प्रमुख स्रोत हैं, इसलिए उन्हें जंगल के मुख्य क्षेत्रों से इकट्ठा करना निषिद्ध है। असम, कोलकाता, बिहार, ओडिशा और कुमाऊँ से गढ़वाल तक का उप-हिमालयी मार्ग। 10. चकोतरा / बटाबी लेबू (पोमेलो) सिट्रस परिवार के एक असामान्य सदस्य, चाकोट्रस या पोमेलोस में कड़वाहट और अम्लता के बिना थोड़ा खट्टा अंगूर का स्वाद होता है, जो भव्य पुष्प ओवरटोन के साथ मिलकर होता है। पोमेलोस इंडोनेशिया के बलविया से भारत आए, जो उनके अन्य स्थानीय नाम बाताबी-लेबू का कारण है। मेघालय के गारो हिल्स में, सांस्कृतिक समारोहों में भी यह फल मिलता है - स्थानीय लोग एक "पॉमेलो नृत्य" करते हैं, जो कमर के चारों ओर एक नाल बंधे हुए पॉमेलो को घुमाता है।  पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक और केरल के कुछ क्षेत्र 11. करौंदा (कारांडस चेरी) एक पोषण से भरपूर जंगली बेरी, करौंदा गुलाबी रंग के फल होते हैं, जिनके मूल में छोटे बीज होते हैं। कच्चे फल का मांस एक तीखा स्वाद के साथ दृढ़ होता है जो सेंधा नमक छिड़कने के साथ खाया जाता है। क्रैनबेरी के रूप में कॉल करने वाले व्यंजनों में एक अच्छा विकल्प के रूप में निविदा, सुस्वाद और बैंगनी रंग के बने, निविदा, करौंद बन जाते हैं। प्राकृतिक पेक्टिन का एक बड़ा स्रोत, ये जामुन आमतौर पर जाम और मीठे अचार में भी उपयोग किया जाता है। में विकसित: बिहार और पश्चिम बंगाल के सिवालिक हिल्स, पश्चिमी घाट और नीलगिरी हिल्स 12. बिलंबी (ट्री सोरेल) तारे के फल के एक रिश्तेदार, बिलंबीज़ चमकीले हरे और दृढ़ होते हैं जब कच्चे होते हैं और पकने पर पीले, चमकदार और कोमल हो जाते हैं। बिलीम्बिया की भारतीय किस्म में तीखा, टेंगी, अम्लीय और तेज नोट होते हैं, जो काफी पंच पैक करते हैं। कई बिलंबी प्रेमी इन ताज़ा गुणों को भुनाने के लिए नींबू पानी के प्रकार का पेय बनाते हैं। इसकी अम्लता को कम करने के लिए, चटनी, अचार और जैम में इस्तेमाल करने से पहले फल को अक्सर पहले थोड़ी देर के लिए नमक के पानी में भिगोया जाता है। केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा। 13. टारगोला / ताल (आइस एप्पल या चीनी पाम फल) एक प्रकार का ताड़ का फल जो गुच्छों में उगता है, टारगोला या ताल में एक कड़ा भूरा बाहरी और एक जेली जैसा इंटीरियर होता है। खुला काटने पर, प्रत्येक फल में जेली जैसे खंडित बीज होते हैं, जो एक नरम बंद-सफेद त्वचा के साथ होते हैं जो हवा के संपर्क में आने पर हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं। पतली त्वचा को हटाना थकाऊ हो सकता है, लेकिन प्रयास इसके लायक है। गर्म गर्मी के मौसम में एक ठंडा उपचार, एक टारगोला में काटने से ताज़ा मीठा रस निकलता है जो प्रत्येक खंड के केंद्र में रहता है। फलों का उपयोग ताड़ी, स्थानीय मादक पेय बनाने के लिए भी किया जाता है।  तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा और केरल। 14. फालसा (भारतीय शेरबेट बेरीज) एक छोटे से गहरे बैंगनी रंग के फल जो मीठे और खट्टे स्वादों को खूबसूरती से संतुलित करते हैं, फालसा आपको ब्लूबेरी की याद दिलाएगा। कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, पोटेशियम, फास्फोरस और विटामिन सी से भरपूर, फालसा एक सुपर फल है जो एक प्रभावी शीतलन प्रभाव है जो गर्मियों के लिए एकदम सही है। यह ज्यादातर नमक और काली मिर्च के छिड़काव के साथ पका और ताजा खाया जाता है। हालाँकि फल का एक सिरप या एक स्क्वैश भी तैयार किया जाता है, ताकि लंबे समय तक इस स्वस्थ फलों के लाभों का आनंद लिया जा सके। पूरे भारत में 15. खिरनी / रेयान (मिमुसोप्स) पिघलती हुई मिठास के साथ सुनहरे पीले जामुन, खिरनी या रयान ट्रापिक्स के पार पाए जाने वाले सपोटैसी परिवार के सदस्य हैं (जिसमें सपोटा या चीकू भी शामिल है)। मई में केवल बहुत ही कम अवधि के लिए उपलब्ध है, बस जब गर्मी का मौसम शुरू होता है, तो अक्सर अधिक लोकप्रिय बैंगनी-बालों वाले जामुन के साथ, खिरनी बेची जाती है, यही वजह है कि कई लोग इसे एक समान कसैले मानते हैं। यह करता है, लेकिन जब आप सड़ांध में सेट करते हैं तो पकने वाली खटास गायब हो जाती है।  मध्य भारत और दक्कन प्रायद्वीप

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Fertlizer application to Apple trees

For 15 years and above age apple / pear plants apply the following dosage of chemical fertilizers per plant. Potash 2.5 kgs Urea 1.5 kg DAP 750 gms. Adding fertilizer to apple trees should be done 3 times during the growing season. 1. Make the first application (1/3rd urea, full DAP and 1/2 MOP) in early spring (preferably 15 days) before flowering. 2. Make the second application (of 1/3rd urea) about a month later, after flowering is completed . 3 And the final application (remaining urea and MOP) of fertilizer should be applied at the end of June, about a month after the second application under adequate moisture conditions. Note, : avoid any kind of hoeing, fertilizer application or pesticides spray during full bloom period.

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Mango malformation: A serious problem in mango orchards.

Problem: Mango Malformation Area: Northern India Control Measures: 1. Timely and sufficient application of integrated plant nutrients. 2. Standard training and regular pruning to form well ventilated canopy of the tree with better solar interception. 3. Immediately after appearance of the symptoms prune/remove the affected plant parts (vegetative and floral) along with approximately 20cm healthy potion of twig. Use tree pruner to approach higher branches. Collect and burn the removed biomass. After pruning of affected plant parts spray Carbendazim/Bavistin or Copper Oxychloride or Wettable Sulphur at the rate of 2.5 to 3.0 gram per litre of water on tree canopy. Repeat the spray after 15 days. 4. Spray NAA (Naphthalene Acetic Acid) at the rate of 150 mili gram/mili litre per litre of water in the month of October. Take care about concentration of NAA in commercial formulation. For Ex if concentration is 20 percent then divide the quantity of quantity of NAA needed by 0.20 and use resultant volume of formulation. If concentration of NAA formulation is 20 percent then to supply 150 ml of NAA we have to use 150/0.20 = 750 ml of formulation. 5. Similarly rate of CoC and Wettable sulphur should also be modified. Hope this information will help to the farmers growing mango organically. yes that's indeed a better decision. Comments and suggestions are welcome. Thanks

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Fertlizer application to Apple trees

For 15 years and above age apple / pear plants apply the following dosage of chemical fertilizers per plant. Potash 2.5 kgs Urea 1.5 kg DAP 750 gms. Adding fertilizer to apple trees should be done 3 times during the growing season. 1. Make the first application (1/3rd urea, full DAP and 1/2 MOP) in early spring (preferably 15 days) before flowering. 2. Make the second application (of 1/3rd urea) about a month later, after flowering is completed . 3 And the final application (remaining urea and MOP) of fertilizer should be applied at the end of June, about a month after the second application under adequate moisture conditions. Note, : avoid any kind of hoeing, fertilizer application or pesticides spray during full bloom period.

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Immunity boosting foods

1. Curd. A probiotic helps in maintaing a healthy gut micribiota which directly influences our immunity. Having curd added with fresh mint will enhance immunity , add some iron and flavor in our diet. 2. Use of chutnies is quite healthy and helpful in maintaining immunity. Especially including fresh herbs, lemon ginger garlic in it is an advantage. 3. Consumption of colored fruits also helps in immunity boosting. 4.use of green leafy vegetables maintains healthy gut microbiota as well as relieves constipation. What ever we consume we have to wash food with clean warm water.